
मध्य प्रदेश के संगमरमरी शहर जबलपुर में विवेचना रंगमंडल का नाट्य समारोह आज मानस भवन में शुरू हुआ। पत्रकारिता के पितृ पुरुष कहे जाने वाले स्व.श्री विशम्भर दयाल अग्रवाल को पुष्पमाला समर्पित करते हुए समारोह कि शुरुआत की गयी। आज के समारोह में प्रथम प्रस्तुति समागम रंगमंडल की तरफ से दी गयी। समागम द्वारा आचार्य चतुरसेन लिखित "सोमनाथ" को आशीष पाठक के निर्देशन में दर्शकों के बीच लाया गया। सोमनाथ का मंचन जिस वक़्त मानस भवन में हो रहा था, उस वक़्त वहाँ उपस्थित मानस ने ये सोचा भी नही होगा कि शहर के कलाकार तमाम असुविधाओं से जूझते हुए हृदय को उच्च रक्ताचापित कर देने वाली अभिवयक्ति देंगे। स्थानीय मोहनलाल हरगोविंद दास महिलामहाविद्यालय की छात्राओं ने नाटक में प्रस्तुत पुरुषों के किरदारों को भी बेहतर निभाया है। इन्हीं छात्राओं के अथक प्रयासों से राष्ट्रीय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान पर था।
सोमनाथ के आज के मंचन को देखने क बाद लगा कि तत्कालीन और समकालीन समय में हम जिन अनीतियों

सोमनाथ के मंचन के दौरान श्रीधर नागराज का संगीत निर्देशन बहुत सफल रह है, वस्त्रों कि छटा भी श्रीमती शैली घोपे ने खूब बिखेरी है साथ ही नृत्य का निर्देशन भी उम्दा किया है। हर्षित और रोहित झा ने रुप सज्जा में कोई कसर नही छोड़ी लेकिन मंच सज्जा में कमी को स्थान दिया है। इसके बावजूद अमित विश्वकर्मा कि मंच व्यवस्था ठीक रही है। नाटक में गंग का किरदार निभाने वाली अंकिता चक्रवर्ती दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ने में सफल रही हैं। वहीं स्वाति दुबे ने शोभना के पात्र को जीवंत किया है। देव कृष्ण के किरदार में ईशा गोस्वामी ने कहीं पर मनोदशाओं की अभिव्यक्ति को अधूरा छोडा है। कुलजमा एक सोमनाथ आज मानस के बीच कलाकारों ने उपस्थित कर दिया था।

डॉ.सुयोग पाठक के संगीत निर्देशन में गुलज़ार की नज्मों को गुलदस्ता बनाकर मंच पर लाया गया है। गुलज़ार की एक कृति "छैयाँ - छैयाँ" को पूरी तरह से निभाया गया है। निर्देशक मणिरत्नम व्यवसायिकता के चलते फिल्म "दिल से" में "छैयाँ - छैयाँ" के जिन सरोकारों से चूक गए थे उसे विवेचना रंगमंडल ने पूरा किया है। इस कृति के साथ और न्याय किया जा सकता था यदि अलमस्त आवाज़ में इस नज़्म को संवारा जाता। बेशक रेशम का यह शायर के लिए जिन पात्रों का चयन किया गया उनका पसीना मोती की तरह चमका।
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